
पलारी/बलौदाबाजार।
राज्य के सहकारी बैंकों में गुरुवार 06 नवंबर 2025 को पूरी तरह तालाबंदी रहेगी। रायपुर, बलौदाबाजार, धमतरी, महासमुंद, गरियाबंद और सारंगढ़–बिलाईगढ़ जिलों की कुल 73 शाखाएँ बंद रहेंगी। जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक कर्मचारी संघ के बैनर तले सभी कर्मचारी सामूहिक अवकाश पर रहेंगे। इस सामूहिक हड़ताल का असर व्यापक होगा—बैंकिंग सेवाएँ ठप पड़ेंगी, किसान अपने लेनदेन व धान खरीदी के लिए दर-दर भटकेंगे और उनकी परेशानी कई गुना बढ़ जाएगी।
कर्मचारी संघ के अध्यक्ष मोहनलाल साहू ने बताया कि आंदोलन का यह तृतीय चरण सरकार और सहकारिता विभाग के अड़ियल रवैये की प्रतिक्रिया है। वार्षिक वेतन वृद्धि और पाँच वर्षों के एरियर्स भुगतान को लेकर वर्षों से संघर्ष जारी है। उच्च न्यायालय की एकल और युगल पीठ दोनों में कर्मचारियों को जीत मिली, यहाँ तक कि स्पष्टीकरण याचिका में भी सरकार से जवाब तलब हुआ, पर आदेश लागू नहीं किए गए। उन्होंने कहा कि यह न्यायालय की अवमानना है और कर्मचारियों के संवैधानिक अधिकारों की अवहेलना है।
संघ के संयुक्त प्रतिनिधि मंडल में शामिल देवेंद्र पांडे, विधान तिवारी, युवराज दुबे, अविनाश शर्मा, मनोज कुमार दिवाकर, दिलीप दिवाकर, शिवेश मिश्रा, देवकुमार व्यास, किरण बांधे, नीतू राठौर, प्रदीप सोनी, सुनील सुकुमारन, रोहित जायसवाल, कुलेश्वर यादव, गुणनिधि साहू, रमेश कुमार धावलकर, ओमप्रकाश वर्मा, धीरेन्द्र वर्मा, संजय वर्मा, सुशील यदु, प्रहलाद पटेल और फत्तेसेन ने कहा कि जब न्यायालय ने कर्मचारियों के पक्ष में आदेश दिया और सरकार पर कोई वित्तीय बोझ नहीं है, तब भी वेतन वृद्धि रोकना न केवल अन्याय है बल्कि सरकारी जिद और असंवेदनशीलता का प्रतीक है।
सेवानिवृत्त कर्मचारियों रमेश शर्मा, जहीर अहमद कुरैशी, सुशील सोनी, कुमार वर्मा, अरुण सक्सेना और परमेश्वर वर्मा ने भी सरकार के रवैये की कड़ी आलोचना की है। उन्होंने कहा कि जब वेतन वृद्धि बैंक के स्वयं के अर्जित लाभ से दी जानी है और इससे सरकार के खजाने पर कोई भार नहीं पड़ता, तो रोक लगाना अमानवीय है। सरकार को चाहिए कि वह कर्मचारियों की जायज़ मांगों को तत्काल पूरा करे और सहकारिता क्षेत्र में व्याप्त असंतोष को शांत करे।
कर्मचारियों ने कहा कि हड़ताल के दिन सभी शाखाएँ बंद रहेंगी और वे सुबह 10:30 बजे से शाम 5:30 बजे तक जिला मुख्यालय स्थित नोडल कार्यालय में धरना, नारेबाज़ी और विरोध प्रदर्शन करेंगे। संघ ने चेतावनी दी है कि अगर मांगें नहीं मानी गईं तो आंदोलन अगले चरण में और उग्र रूप लेगा।
हड़ताल का सीधा असर किसानों पर पड़ेगा। सहकारी बैंकों के बंद रहने से धान खरीदी, अमानत, ऋण वितरण, खाद-बीज आपूर्ति सहित ग्रामीण अर्थव्यवस्था से जुड़े सभी कार्य ठप पड़ेंगे। किसानों को अपनी राशि निकालने, भुगतान प्राप्त करने या लेनदेन के लिए अन्यत्र भटकना पड़ेगा। उनकी परेशानी और बढ़ेगी क्योंकि धान खरीदी का मौसम शुरू हो चुका है और नकदी की जरूरत चरम पर है। संघ ने कहा कि इस असुविधा की पूरी जिम्मेदारी सरकार और सहकारिता विभाग की होगी, जिन्होंने वर्षों से कर्मचारियों की वैध मांगों को दरकिनार किया है।
सहकारिता क्षेत्र के जानकारों ने भी सवाल उठाया है कि जब सरकार के खजाने पर कोई भार नहीं पड़ता, तो पंजीयक कार्यालय और सहकारिता विभाग कर्मचारियों की वेतन वृद्धि को लेकर टालमटोल क्यों कर रहे हैं। उनका कहना है कि सरकार की यह चुप्पी और देरी न केवल कर्मचारियों को निराश कर रही है, बल्कि सहकारी तंत्र की विश्वसनीयता को भी कमजोर कर रही है।
सत्ताधारी दल के कई स्थानीय नेताओं और सहकारी संगठनों ने कर्मचारियों की मांग को पूरी तरह न्यायोचित और वैध बताया है। नेताओं ने मुख्यमंत्री से तत्काल हस्तक्षेप की मांग करते हुए कहा है कि अगर सरकार ने शीघ्र समाधान नहीं निकाला तो यह हड़ताल राज्यव्यापी संकट में बदल सकती है।
संघ के पदाधिकारियों का कहना है कि यह आंदोलन सिर्फ वेतन वृद्धि का नहीं बल्कि न्याय, सम्मान और हक की लड़ाई है। कर्मचारियों ने कहा कि “हम न्यायालय से जीत चुके हैं, लेकिन सरकार से न्याय की उम्मीद अब भी अधूरी है।” यदि सरकार ने शीघ्र हस्तक्षेप नहीं किया, तो इसका खामियाज़ा न केवल सहकारी बैंकिंग व्यवस्था बल्कि किसानों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी भुगतना पड़ेगा, जिससे किसानों की परेशानी और गहराएगी।


