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सेवा पुस्तिका में नहीं दर्ज हुआ चेतावनी पत्र, बीईओ कार्यालय की लापरवाही उजागर I

 

महासमुंद, 7 जुलाई 2025।
शासकीय कार्यालयों में नियमों की अनदेखी और अधिकारियों की मिलीभगत का एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है। वर्ष 2018 में विकासखंड शिक्षा अधिकारी कार्यालय, बसना में कार्यरत एक अधिकारी के खिलाफ चेतावनी पत्र जारी किया गया था, लेकिन आज सात साल बीत जाने के बाद भी यह चेतावनी पत्र संबंधित कर्मचारी की सेवा पुस्तिका में दर्ज नहीं किया गया है। यह गंभीर लापरवाही सवालों के घेरे में है, खासकर तब जब यह पत्र किसी उच्च पद पर नियुक्ति में प्रभाव डाल सकता था।

पूरा मामला वर्तमान में विकासखंड स्रोत केंद्र समन्वयक (बीआरसी) बसना पदस्थ पूर्णानंद मिश्रा से जुड़ा है, जो वर्ष 2018 में संकुल समन्वयक, गिधली के पद पर कार्यरत थे। उस समय उन्होंने विभागीय व्हाट्सएप ग्रुप में अनुशासनहीन और विवादास्पद पोस्ट साझा किए थे। मामले के प्रकाश में आने पर मुख्य कार्यपालन अधिकारी, जिला पंचायत महासमुंद ने तत्कालीन बीईओ से जांच प्रतिवेदन मांगा था।

जांच उपरांत 6 जून 2018 को मिश्रा को चेतावनी पत्र जारी किया गया, जिसमें स्पष्ट रूप से उल्लेख था कि उन्होंने वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देशों की अवहेलना की, बहस की, समय पर जानकारी प्रस्तुत नहीं की और व्हाट्सएप ग्रुप में सिविल सेवा आचरण नियमों के विरुद्ध पोस्ट किए। इसे शासकीय कर्तव्यों में घोर लापरवाही और स्वेच्छाचारिता माना गया।

सेवा पुस्तिका से गायब चेतावनी पत्र

मामले में सबसे चौंकाने वाला तथ्य यह है कि यह चेतावनी पत्र मिश्रा की सेवा पुस्तिका में दर्ज ही नहीं किया गया। जब बीआरसी पद पर उनकी नियुक्ति के लिए सेवा पुस्तिका के आधार पर जिला प्रशासन ने रिपोर्ट मांगी, तब तत्कालीन बीईओ जे.आर. डहरिया द्वारा चेतावनी पत्र का कोई उल्लेख नहीं किया गया। इसके चलते मिश्रा को लाभ मिला और उन्हें बीआरसी पद पर नियुक्ति मिल गई।

आरटीआई कार्यकर्ता ने उठाई आवाज

आरटीआई कार्यकर्ता विनोद कुमार दास ने मामले में गंभीर अनियमितता का आरोप लगाते हुए कहा है कि वह इस पूरे मामले की लिखित शिकायत सबूतों सहित छत्तीसगढ़ लोक शिक्षण संचालनालय में करेंगे। उन्होंने मांग की है कि इस तरह की लापरवाही पर सख्त कार्रवाई हो और संबंधित अधिकारियों की जवाबदेही तय की जाए।

प्रशासन की भूमिका संदिग्ध

इस प्रकरण ने यह स्पष्ट कर दिया है कि कैसे एक चेतावनी पत्र की उपेक्षा कर अधिकारियों को लाभ पहुंचाया जा रहा है। यदि भविष्य में भी ऐसे प्रकरणों को नजरअंदाज किया जाता रहा तो यह सरकारी सेवा प्रणाली की पारदर्शिता और अनुशासन पर गंभीर प्रश्नचिन्ह खड़ा करेगा।

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