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मतदाता सूची पुनरीक्षण या मताधिकार पर हमला

रिपोर्टर टेकराम कोसले

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यह आलेख “मतदाता सूची पुनरीक्षण या मताधिकार पर हमला?” एक अत्यंत महत्वपूर्ण और गंभीर विषय को उठाता है, जिसमें मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) के नाम पर लोकतांत्रिक अधिकारों, खासकर गरीब, वंचित और अल्पसंख्यक वर्गों के मताधिकार पर संभावित हमले की ओर ध्यान आकृष्ट किया गया है।

यहां कुछ मुख्य बिंदुओं और विश्लेषण को संक्षेप में रखा गया है:

🔴 मुख्य बिंदु:

1. 25 जून को इत्तेफाक नहीं, संकेत है:

इमरजेंसी की 50वीं बरसी के दिन ही बिहार में विशेष पुनरीक्षण की शुरुआत – इसे प्रतीकात्मक रूप में संविधान और जनतंत्र पर हमले के रूप में देखा गया है।

 

2. समय-सीमा असंभव:

8 करोड़ से अधिक मतदाताओं को 1 महीने के भीतर फार्म भरकर प्रमाण सहित जमा करना – एक अव्यवहारिक और असंभव कार्य, जिससे लाखों लोग स्वतः बाहर हो जाएंगे।

 

3. नई प्रक्रिया का सार – जिम्मेदारी अब मतदाता पर:

पहले चुनाव आयोग की जिम्मेदारी थी नागरिक को मतदाता सूची में शामिल करना, अब इसे नागरिक पर डाल दिया गया है – यानी जिसने प्रक्रिया नहीं निभाई, वह स्वतः वंचित हो गया।

 

4. एनआरसी की छाया:

माता-पिता की जन्मतिथि और जन्मस्थान के प्रमाण की अनिवार्यता – सीधी तुलना एनआरसी जैसी विवादित प्रक्रिया से की गई है।

 

5. सांप्रदायिक और वर्गीय आशंका:

इससे अल्पसंख्यक, गरीब, अशिक्षित, पिछड़े वर्गों के बड़ी संख्या में बाहर होने की आशंका – और वहीं समृद्ध, सवर्ण, शिक्षित वर्ग सूची में सुरक्षित।

 

6. चुनावी साजिश का आरोप:

विपक्ष समर्थक तबकों को सूची से बाहर करके सत्ता पक्ष को लाभ पहुंचाने का षड्यंत्र – ऐसा संकेत लेखक ने स्पष्ट रूप से दिया है।

 

7. देशव्यापी योजना की चिंता:

बिहार से शुरू होकर देशभर में लागू करने की योजना – यह सिर्फ राज्य विशेष नहीं, पूरे लोकतंत्र पर संकट है।

 

 

🧭 लेख की विशेषताएं:

तथ्यों और तर्कों से समृद्ध: लेख कानूनी प्रक्रियाओं और चुनाव आयोग की घोषणाओं की वास्तविकताओं के हवाले से अपनी बात मजबूत करता है।

ऐतिहासिक और राजनीतिक संदर्भ: इमरजेंसी, एनआरसी, 2003 पुनरीक्षण – इन सब उदाहरणों का सटीक उपयोग।

भाषा में तीव्रता और चेतावनी: यह लेख न केवल सूचित करता है, बल्कि पाठक को झकझोरता है और लोकतंत्र को बचाने की पुकार लगाता है।

 

🛑 निष्कर्ष और चिंता:

यह पुनरीक्षण प्रक्रिया केवल तकनीकी बदलाव नहीं, बल्कि एक संभावित जनतंत्र विरोधी औजार बन सकती है। इसका उद्देश्य मतदाता सूची को “स्वच्छ” बनाना नहीं, बल्कि राजनीतिक रूप से लाभकारी वर्गीय-साम्प्रदायिक सफाई करना हो सकता है। इससे मताधिकार का व्यापक हनन हो सकता है, विशेषकर उन तबकों का जिनकी पहुंच दस्तावेज़ों और प्रक्रियाओं तक सीमित है।

📣 समर्थन योग्य मांग:

इस प्रक्रिया को तत्काल स्थगित किया जाए।

चुनाव आयोग को सार्वजनिक विमर्श और राजनीतिक परामर्श के बाद ही ऐसे फैसले लेने चाहिए।

मतदाता सूची में नाम जोड़ने की राज्य की जिम्मेदारी को फिर से बहाल किया जाए।

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