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अमेरिका-इजरायल को चुनौती देता ईरान और भारतीय राजनीति का पतन आलेख-संजय पराते।

 

सरजू प्रसाद साहू ,अमेरिका के समर्थन से इजरायल ने बिना किसी कारण और उकसावे के ईरान पर हमला किया था, तो लग रहा था कि इजरायल की सामरिक शक्ति के आगे ईरान ढह जायेगा और समर्पण कर देगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और किसी ने सोचा भी न था कि अमेरिका-इजरायल गठबंधन के आगे ईरान इस तरह तनकर खड़ा हो जाएगा कि इजरायल को दिन में ही तारे दिखने लगे। मीडिया द्वारा ईरान की बर्बादी की कितनी भी सच्ची झूठी तस्वीरें दिखाई जाएं, लेकिन सच्चाई यही है कि इजरायल में ईरान ने जितनी तबाही मचाई है, उसकी कल्पना भी अमेरिका और इजरायल ने मिलकर नहीं की थी। नेतन्याहू की विस्तारवादी नीतियों का नतीजा इजरायल की निर्दोष जनता को भुगतना पड़ रहा है और ईरानी हमलों से बचने के लिए उसे बंकरों में भी जगह नहीं मिल रही है।

लेकिन यह हमला क्यों? इजरायल का आरोप है कि ईरान परमाणु बम बना रहा है। यह आरोप वह इजरायल लगा रहा है, जिसने खुद परमाणु बम बना लिया है और फिलिस्तीनियों के कत्लेआम का अपराधी है। याद कीजिए कि ऐसा ही आरोप इराक पर लगाकर सद्दाम हुसैन की हत्या की गई थी और बाद में पता चला कि अमेरिकी आरोपों में कोई दम नहीं था और यह आरोप केवल सद्दाम को सत्ता से हटाने के लिए लगाया है रहा था। ईरान के मामले में भी ठीक ऐसा ही है, क्योंकि इस हमले से पहले तक अमरीकी ख़ुफ़िया विभाग के प्रमुख तुलसी गबार्ड लगातार बयान दे रहे थे कि ईरान ने परमाणु बम नहीं बनाया है, ना ही उसके पास इसे बनाने की क्षमता है। ऐसा ही बयान अंतर्राष्ट्रीय नाभिकीय ऊर्जा एजेंसी के डायरेक्टर जनरल रफाइल ग्रॉसी ने अभी दो दिन पहले ही दिया है कि ईरान परमाणु बम नहीं बना रहा और परमाणु बिजली बनाने के अपने सभी केंद्रों की जाँच में सहयोग कर रहा है।

अमरीकी ख़ुफ़िया विभाग के प्रमुख और अंतर्राष्ट्रीय नाभिकीय ऊर्जा एजेंसी के डायरेक्टर जनरल के बयान विश्वसनीय हैं, क्योंकि ईरान अंतर्राष्ट्रीय संधि परमाणु अप्रसार संधि पर दस्तखत कर चुका है, जो किसी देश को परमाणु बम बनाने से बाधित करता है। अमरीका सहित संयुक्त राष्ट्र के 5 स्थायी सदस्यों रूस, चीन, फ़्रांस और ब्रिटेन के साथ हुए करार में भी ईरान यह गारंटी दे चुका है कि वह कोई परमाणु बम नहीं बनाएगा। उसका परमाणु कार्यक्रम नितांत शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है और ऐसा करने का उसके पास हक है। अभी कुछ दिनों पहले तक खुद अमरीका और ईरान के बीच वार्ता चल रही थी और स्वयं ट्रम्प ने वार्ता में अच्छी प्रगति होने की जानकारी दी थी।

साफ है कि ईरान के पास परमाणु बम होने का आरोप तो एक बहाना है, असली बात ईरान के तेल को हथियाना है, दुनिया के बाजार को नए सिरे से बांटना है, दिवालिया होती अमेरिकी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना है। ट्रंप ने पूरी दुनिया के खिलाफ टैरिफ के नाम पर जो व्यापार युद्ध छेड़ने की कोशिश की थी, उसका क्या हश्र हुआ, सब देख रहे हैं। इससे पैदा शर्मिंदगी से निकलने की यह आड़ है। पूरी दुनिया को फिर से धौंस में लेने और साम्राज्यवादी लुटेरों की चारागाह बनाने की कवायद है। एक ऐसी दुनिया बनाने की हताश कोशिश है, जहां बिना किसी नियम-नैतिकता के बर्बर और असभ्य राज कर सकें और इस पृथ्वी की प्राकृतिक संपदा को अपने मुनाफे के लिए लूट सके।

लेकिन दुनिया को लूटने की साम्राज्यवाद की कोशिशों को कभी स्थायित्व नहीं मिला, न मिलेगा। इसे वियतनाम ने चुनौती दी है, क्यूबा ने दी है। सोवियत संघ के खात्मे और दुनिया के एक ध्रुवीय होने के बाद भी साम्राज्यवादी अमेरिका का सपना पूरा नहीं हुआ है, पूरा नहीं होगा। शोषण के खिलाफ लड़ने वाली सबसे कमजोर ताकत से भी उसे जबरदस्त चुनौती मिली है, क्योंकि मानवीय सभ्यता उपनिवेशवाद की जंजीरों को तोड़कर आगे बढ़ रही है, आगे बढ़ेगी।

लेकिन इस विश्व परिदृश्य में भारत की स्थिति क्या है, भारत कहां खड़ा है? एक समय था, जब दुनिया में भारत की आवाज को शोषित उत्पीड़ितों की आवाज माना जाता था। आज इस चुप्पी की जगह एक मौन पसरा है। एक समय था, जब भारत फिलिस्तीनी पक्ष की मुखर आवाज था। आज वह भारत एक कठपुतली की तरह अमेरिका के इशारे पर फिलिस्तीन पर इजरायल के गमले को रोकने के संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्ताव पर तटस्थ है, जबकि ब्रिटेन, कनाडा और जापान, नेपाल, भूटान, मालदीव, श्रीलंका, सार्क, ब्रिक्स और शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के सभी सदस्य देशों ने युद्ध विराम के पक्ष में वोट दिया है। पूरी दुनिया की शांतिकामी जनगण से अपने आपको काटने का काम नरेंद्र मोदी की सरकार ने किया है। केंद्र में काबिज यह पहली सरकार है, जिसने भारत में फिलिस्तीन के पक्ष में होने वाले प्रदर्शनों का दमन किया है और आंदोलनकारियों को गिरफ्तार किया है। केंद्र में बैठी मोदी सरकार फिलिस्तीन को एक शत्रु-राष्ट्र मान रही है।

यही रवैया ईरान-इजरायल युद्ध के बारे में है। ईरान हमारा परंपरागत मित्र रहा है, जो कश्मीर के मामले में हर नाजुक समय में हमारे साथ खड़ा रहा है।लेकिन भारतीय जनगण आज शर्मिंदा है कि भारत आज इजरायल-अमेरिका गठजोड़ के पक्ष में खड़ा है। मोदी सरकार का यह रवैया उन अटलबिहारी बाजपेयी की भी तौहीन है, जिनके बिना नरेंद्र मोदी आज प्रधानमंत्री होने का सपना भी नहीं देख सकते थे। नरेंद्र मोदी ने भारत की गुट निरपेक्षता की विदेश नीति को मुस्लिम विरोध की नीति पर लाकर पटक दिया है। विश्व पटल पर भारतीय राजनीति का इससे बड़ा पतन और क्या हो सकता है?

सह संपादक

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