जालोर.मांडवला जहाज मंदिर के प्रवचन हॉल में आज प्रवचन फरमाते हुए पूज्य आचार्य जिनमणिप्रभसूरि ने कहा- गुरू वह है जो स्वयं भी मुक्त हो और हमें भी मुक्ति के मार्ग पर ले जायें। उन्होंने कहा- सिर्फ उपदेशक गुरू नहीं हो सकता। जिनका अपना आचरण आसक्ति और मोह से परिपूर्ण हो, वह हमें मोक्ष का मार्ग कैसे दिखा पायेगा?
उन्होंने कहा- गुरू का स्थान भारतीय संस्कृति में बहुत महत्वपूर्ण है। भगवान् सबसे ज्यादा पूजनीय है, पर गुरू का उपकार अनन्त है क्योंकि वे ही हमें परमात्मा से साक्षात्कार कराते हैं। उन्होंने कहा- हमारे जीवन में गुरू का होना अत्यन्त अनिवार्य है। मित्र न हो तो चलेगा, पर गुरू न हो तो नहीं चलेगा। मित्रता में तो स्वार्थ के छींटे हो सकते हैं, पर गुरू में कोई स्वार्थ नहीं होता। वे सदा सच्ची सलाह ही देते हैं। उन्होंने गुरू गौतम स्वामी का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए कहा- उनके हृदय में परमात्मा के प्रति भक्ति की ही मुख्यता थी। उन्होंने केवलज्ञान पाना भी मंजूर नहीं किया। उनके हृदय की भक्ति इन शब्दों में उमड पडी थी कि यदि केवलज्ञान पाने के लिये आपको… आपके प्रति राग को छोडना पडे तो ऐसा ज्ञान मुझे नहीं चाहिये।
उन्होंने कहा- गुरू के प्रति भक्ति निरपेक्ष चाहिये। कोई अपेक्षा नहीं होनी चाहिये। जहाँ अपेक्षा है, वहाँ स्वार्थ है और जहाँ स्वार्थ है वहाँ संसार है। भक्ति श्रद्धा निरपेक्ष चाहिये। कोई अपेक्षा नहीं, कोई आकांक्षा नहीं। जहां पाने की आकांक्षा है, वहाँ कुछ प्राप्त नहीं होता। और जहाँ काई आकांक्षा नहीं होती, वहाँ सब कुछ मिल जाता है। उन्होंने कहा- गुरू से ही जीवन शुरू होता है। भक्त के हृदय में भगवान् तो सदा बसते हैं पर सच्चा भक्त तो वह है जो भगवान् व गुरू के हृदय में बसता हो। जिसने गुरू के हृदय में स्थान प्राप्त कर लिया, उसने निश्चित ही भगवान् को पा लिया।
मुकेश प्रजापत ने बताया कि आचार्यश्री यहाँ से पाली होते हुए कालाउना पधारेंगे, जहाँ 28 मई को पार्श्वनाथ मंदिर की प्रतिष्ठा होगी, जिसमें सिरवी समाज के धर्मगुरु माननीय पूर्व मंत्री श्री माधोसिंहजी दीवान पधारेंगे। वहाँ से पाली पधारेंगे, जहाँ 1 जून को नये बने कुशल कान्ति आराधना भवन का उद्घाटन होगा।
वहाँ से डुठारिया, उदयपुर, केशरियाजी, सिरोही, आबू रोड होते हुए बाडमेर पधारेंगे, जहाँ वे 6 जुलाई को चातुर्मास हेतु प्रवेश करेंगे।