किसान सभा और अन्य जुझारू संगठनों ने किया समर्थन
कोरबा -: छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल कोरबा जिले में, जो संविधान की 5वीं अनुसूची के तहत आता है, बांगो बांध से विस्थापित मछुआरों ने अपनी आजीविका यानी मछली पालन का अधिकार वापस पाने के लिए संघर्ष छेड़ दिया है। उनकी इस लड़ाई को अखिल भारतीय किसान सभा से संबद्ध छत्तीसगढ़ किसान सभा और हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति जैसे संगठनों का समर्थन मिला है।
निजीकरण के विरोध में संघर्ष
हसदेव नदी पर 1980 के दशक में निर्मित बांगो बांध (जिसे अब बुका विहार जलाशय कहा जाता है) के कारण 58 आदिवासी बाहुल्य गाँव पूरी तरह डूब गए थे और हजारों परिवार विस्थापित हुए। विस्थापन के बाद, तत्कालीन कलेक्टर के आश्वासन पर विस्थापित परिवारों को रॉयल्टी के आधार पर 14-15 वर्षों तक मछली पालन करने की अनुमति मिली, जिसके लिए कई मछुआरा सहकारी समितियाँ भी बनाई गईं।
हालांकि, छत्तीसगढ़ राज्य के निर्माण (वर्ष 2000) के बाद आई सरकारों ने प्राकृतिक संपदा के निजीकरण की नीति अपनाई, जिसका असर बांगो बांध पर भी पड़ा। शुरुआती कांग्रेस सरकार (अजीत जोगी) ने जहां राज्य परिवहन निगम को समाप्त किया, वहीं बाद की भाजपा सरकार ने बांगो बांध को मत्स्य पालन के लिए निजी ठेकेदारों को सौंपने का निर्णय लिया। इस निर्णय ने स्थानीय विस्थापित आदिवासियों को उनके ही जल पर मजदूर बना दिया, जिससे वे अपनी पारंपरिक आजीविका से वंचित हो गए। पिछले दो दशकों से जलाशय निजी ठेकेदारों को सौंपा जा रहा है।
मछुआरों ने भरी हुंकार
हाल ही में, ठेके की अवधि (जून 2025) समाप्त होने के बाद, भाजपा सरकार ने फिर से 10 वर्षों की लीज के लिए निविदा जारी कर दी है। इसके विरोध में बांगो बांध से प्रभावित 52 गांवों के मछुआरे लामबंद हो गए हैं और उन्होंने आदिवासी मछुआरा संघ (हसदेव जलाशय) नामक संगठन का निर्माण किया है। उनकी मुख्य मांग है कि उन्हें ठेकेदारों के अधीन काम करने के बजाय, पुरानी व्यवस्था के अनुसार रॉयल्टी के आधार पर मछली पालन का अधिकार वापस दिया जाए।
सम्मेलन और नाव रैली
मछुआरों की मांग को तब और बल मिला जब छत्तीसगढ़ किसान सभा (जो खनन प्रभावित विस्थापितों के लिए लड़ती है) और हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति (जो हसदेव जंगल को बचाने के लिए लड़ती है) ने उनका समर्थन किया। 5 अक्टूबर 2025 को इन संगठनों के नेताओं की उपस्थिति में बांगो बांध प्रभावित आदिवासियों का सम्मेलन हुआ। सम्मेलन में वक्ताओं ने हसदेव जलाशय के निजीकरण का विरोध किया और मछुआरों के आजीविका के नैसर्गिक अधिकार का पुरजोर समर्थन किया।
सम्मेलन के बाद, सैकड़ों मछुआरों ने हसदेव जलाशय में एक अनोखी नाव रैली निकालकर अपना विरोध दर्ज कराया और प्रशासन से निविदा तत्काल रद्द करने की मांग की। अगले ही दिन, 6 अक्टूबर 2025 को, उन्होंने अपनी मांगों को लेकर एस.डी.एम. कार्यालय का घेराव किया और एक ज्ञापन सौंपा।
मछुआरों का यह आंदोलन पेसा कानून के प्रावधानों के उल्लंघन और जल, जंगल, जमीन को कॉर्पोरेटों को सौंपने की साजिशों के खिलाफ स्थानीय आदिवासी अधिकारों की लड़ाई को दर्शाता है।
बहुत अच्छा प्रयास, दिल से सलाम ❤️