
पलारी। दीपावली तिहार नजदीक आते ही पूरा पलारी क्षेत्र लोक परंपराओं की रौनक से सराबोर हो उठा है। गांव-गांव में छोटी-छोटी बालिकाएं पारंपरिक वेशभूषा धारण कर जब “तरी हरी नाना सुवा…” गाती हुई गलियों में निकलीं, तो पूरा क्षेत्र छत्तीसगढ़ी लोकधुनों से गूंज उठा।
सुवा नाच-गान छत्तीसगढ़ की सदियों पुरानी परंपरा है, जो दीपावली पर्व के अवसर पर विशेष रूप से मनाया जाता है। यह नृत्य न केवल लोक संस्कृति का प्रतीक है, बल्कि इसमें ग्रामीण समाज की एकजुटता, प्रेम और श्रद्धा की झलक भी दिखाई देती है।
शाम ढलते ही पलारी नगर सहित आसपास के गांवों — लच्छनपुर, ठेलकी, सोनार देवरी, कोसमंदा, बिनौरी, कुसमी और दतान — में बच्चियों के समूह पारंपरिक गीत गाते हुए घर-घर पहुंचे।
छोटे-छोटे कदमों से थिरकते हुए बालिकाएं स्वर मिलाकर गा रहीं थीं —
“तरी हरी नाना सुवा, बइठे हे आमा डार,
सुवा बोलय रे ………
गीतों की ये पंक्तियाँ सुनकर घरों के बाहर निकले लोग भी झूम उठे। महिलाएं बच्चियों का स्वागत करतीं और उन्हें पारंपरिक रूप से चांवल और पैसा भेंट करतीं। इस दौरान गलियों में उत्सव जैसा माहौल बन गया।
नगर के चौक, मंदिरों और गलियों में दीपों की लौ और सुवा गीतों की गूंज से वातावरण भक्ति और उल्लास से भर उठा।
ग्रामीण महिला केजा बाई ध्रुव ने बताया,
“सुवा नाच हमर छत्तीसगढ़ के आत्मा हे।
ये तिहार मनखे ला जोड़थे, संस्कार सिखाथे अउ मया बाँटे के अवसर देथे।”
स्थानीय लोगों का कहना है कि सुवा नाच केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि यह हमारी संस्कृति, मातृत्व और एकता का प्रतीक है। जैसे-जैसे दीपावली नजदीक आ रही है, सुवा नाच का उत्साह भी चरम पर है। आने वाले दिनों में पलारी क्षेत्र के अन्य गांवों में भी बच्चियों के दल सुवा गीत गाते और नृत्य करते दिखाई देंगे, जिससे तिहार की रौनक और भी बढ़ जाएगी।
Bahut Achcha