ओड़िशा के पश्चिमी अंचल का सबसे बड़ा लोकपर्व “नुआखाई” है। “नए धान खाने का पर्व” भी कहा जाता है। यह त्योहार किसानों और ग्रामीण समाज की मेहनत, संस्कृति और आस्था से जुड़ा हुआ है।
“नुआ” का अर्थ है नया (धान या अनाज)”खाई” का अर्थ है – खाना
👉 यानी नुआखाई का मतलब हुआ – नई फसल का अन्न सबसे पहले देवी-देवताओं को अर्पित कर, फिर परिवार और समाज में उसका सेवन करना।
यह पर्व हर साल भाद्रपद (भादो) माह में, खासकर शुक्ल पक्ष पंचमी या षष्ठी को मनाया जाता है। फसल के कटाई और खेतों में नए धान पकने के बाद इसे मनाने की परंपरा है।
पर्व की परंपरा
1. सुबह-सुबह घर की महिलाएँ नए धान से चावल, पूड़ी, खीर, पकवान आदि बनाती हैं।
2. सबसे पहले अन्न को कुलदेवी, ग्रामदेवी और समलेश्वरी माता को अर्पित किया जाता है।
3. घर के बड़े बुजुर्ग “नुआ” ग्रहण करते हैं और आशीर्वाद देते हैं।
4. इसके बाद सभी सदस्य भोजन करते हैं।
5. दिनभर गाँव और शहरों में नाच-गाना, लोकगीत, नृत्य और सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं।
सामाजिक महत्व
नुआखाई सिर्फ धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि किसानों की मेहनत का उत्सव है यह समाज में आपसी भाईचारा, मेल-मिलाप और एकजुटता को बढ़ाता है।
इस दिन छोटे-बड़े सभी एक-दूसरे से “नुआखाई जुहार” कहकर शुभकामनाएँ देते हैं।
आर्थिक और सांस्कृतिक दृष्टि से
ओड़िशा के पश्चिमी जिलों जैसे संभलपुर, बरगढ़, बलांगीर, कालाहांडी, सुंदरगढ़ एवं सीमावर्ती छत्तीसगढ़ के कई स्थानों में यह पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।
प्रवासी ओड़िया भी देश-विदेश में इस दिन को मनाते हैं और अपनी जड़ों से जुड़े रहते हैं।
👉 इस तरह नुआखाई को पश्चिम ओड़िशा की पहचान भी माना जाता है। यह पर्व हमें प्रकृति, कृषि और परंपरा के महत्व की याद दिलाता है।