
रिपोर्टर टेकराम कोसले
Masb news
बलौदाबाजार/नई दिल्ली, 7 अक्टूबर।
सुप्रीम कोर्ट जैसी सर्वोच्च न्यायिक संस्था में उस समय सनसनी फैल गई जब एक व्यक्ति ने सुनवाई के दौरान “सनातन धर्म का अपमान नहीं सहेगा हिंदुस्तान” का नारा लगाते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) न्यायमूर्ति बी. आर. गवई की ओर जूता फेंकने की कोशिश की।
यह घटना केवल एक आक्रोशित व्यक्ति का कदम नहीं बल्कि समाज में बढ़ते धार्मिक उन्माद और जातिगत घमंड का खतरनाक संकेत है। विशेष रूप से इसलिए भी, क्योंकि न्यायमूर्ति गवई भारत के पहले दलित समुदाय से आने वाले मुख्य न्यायाधीश हैं।
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दलित स्वाभिमान और सामाजिक न्याय पर हमला
इस हमले ने कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं —
क्या यह हमला केवल धर्म के नाम पर था या फिर दलित समुदाय के प्रति गहरे बैठे भेदभाव की मानसिकता का परिणाम?
जब देश का मुख्य न्यायाधीश, वो भी दलित वर्ग से आने वाला व्यक्ति, न्यायालय में निशाना बनाया जा सकता है, तो आम नागरिक, अल्पसंख्यक, आदिवासी और दलित कितने सुरक्षित हैं?
स्पष्ट है कि यह हमला सिर्फ एक व्यक्ति पर नहीं बल्कि दलित स्वाभिमान और सामाजिक न्याय की अवधारणा पर प्रहार है।
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लोकतंत्र और न्यायपालिका पर खतरे की घंटी
भारत का लोकतंत्र संविधान, न्याय और समानता के सिद्धांतों पर आधारित है, न कि धर्म और जातिगत अहंकार पर।
धर्म को राजनीतिक हथियार बनाने की प्रवृत्ति खतरनाक होती जा रही है।
असहमति को तर्क और संवाद से नहीं बल्कि हिंसा और अपमान से जताने का चलन लोकतंत्र के लिए गंभीर चुनौती है।
अगर सुप्रीम कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश भी हमले से सुरक्षित नहीं, तो आम नागरिक किस पर भरोसा करे?
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न्यायमूर्ति गवई का साहस : लोकतंत्र के लिए आशा की किरण
हमले के बावजूद न्यायमूर्ति गवई ने सुनवाई बीच में नहीं रोकी। उन्होंने कहा —
“मुझे इससे फर्क नहीं पड़ता, और हो सकता है यह ऐसी घटना का सामना करने वाला मैं आख़िरी जज रहूं।”
उनका यह वक्तव्य बताता है कि भारतीय न्यायपालिका अब भी मजबूत है। लेकिन इसे बचाए रखना पूरे समाज की जिम्मेदारी है।
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क्या होना चाहिए कदम
आरोपी पर न्यायपालिका की अवमानना, सांप्रदायिक उकसावे और राष्ट्रविरोधी कृत्यों के तहत कड़ी कार्रवाई हो।
सुप्रीम कोर्ट सहित सभी संवैधानिक पदों की सुरक्षा व्यवस्था की उच्च स्तरीय समीक्षा की जाए।
धर्म और जाति के नाम पर हिंसा फैलाने वालों को राजनीतिक संरक्षण से दूर रखा जाए।
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बहुजन समाज पार्टी का बयान
इंजी. रवि रविन्द्र, जिला प्रभारी बहुजन समाज पार्टी (जिला बलौदाबाजार) ने कहा कि –
“जब दलित वर्ग से आने वाले मुख्य न्यायाधीश ही सुरक्षित नहीं हैं तो देश के आम नागरिकों की सुरक्षा की क्या गारंटी है? यह केवल न्यायपालिका नहीं, बल्कि लोकतंत्र और संविधान पर हमला है।”
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निष्कर्ष
यह घटना इतिहास में दर्ज हो जाएगी। लेकिन असली सवाल यह है कि हम इसे एक “चेतावनी” मानते हैं या एक “साधारण घटना” की तरह भुला देते हैं। अगर न्यायपालिका पर हमले को समाज सहन करने लगे, तो निश्चित ही लोकतंत्र की जड़ें हिलने लगेंगी।
प्रशासन द्वारा, ऐसे बदमाशों को कड़ी से कड़ी सजा देवें
ताकि गलती दोबारा न हो