जिला ब्यूरो चीफ/ तोषन प्रसाद चौबे
छत्तीसगढ़ में बिजली विभाग की कार्यप्रणाली को लेकर उपभोक्ताओं में गहरी नाराज़गी है। पलारी क्षेत्र से लेकर राज्य के अलग-अलग जिलों में ग्रामीणों और कस्बाई उपभोक्ताओं का कहना है कि विभाग खपत से कहीं अधिक बिल थमा रहा है, जबकि शिकायत दर्ज कराने के बाद भी समस्या का समाधान नहीं होता।
इस बीच सरकार की “बिजली बिल हाफ योजना” में कटौती ने जनता की चिंताओं को और बढ़ा दिया है। पहले 400 यूनिट तक की खपत पर 50% सब्सिडी मिलती थी, लेकिन 1 अगस्त से इसे घटाकर केवल 100 यूनिट कर दिया गया है। इसका असर सितंबर माह के बिलों में साफ दिखाई दिया है। जिन उपभोक्ताओं का बिल पहले 500-600 रुपए आता था, अब वही 1,500 से 2,000 रुपए तक पहुंच गया है।
किसानों का कहना है कि बढ़ते बिलों ने खेती की लागत को दोगुना कर दिया है। मजदूर वर्ग कहता है कि बिजली बिल चुकाने के बाद घर का खर्च चलाना असंभव हो गया है। महिलाएं चिंता व्यक्त कर रही हैं कि अब बच्चों की पढ़ाई और घरेलू ज़रूरतें बुरी तरह प्रभावित होंगी।
⚡ पलारी क्षेत्र की आवाज़ – राज्य की सबसे बड़ी चिंता
पलारी क्षेत्र की तस्वीर बिजली विभाग की मनमानी की पोल खोलने के लिए पर्याप्त है। यहां से जो तथ्य सामने आए हैं, वे न केवल जिले बल्कि पूरे राज्य की जनता की पीड़ा को उजागर करते हैं।
सिंधोरा गांव: यहां एक ग्रामीण का मासिक बिल पहले 1,000 से 2,000 रुपए तक आता था। इस बार अचानक 9,000 रुपए से ऊपर का बिल थमा दिया गया। ग्रामीणों का कहना है कि उन्होंने इतनी खपत की ही नहीं, लेकिन विभाग ज़बरदस्ती वसूली कर रहा है।
कुसमी गांव: इस गांव के एक उपभोक्ता का बिल पहले 200 रुपए आता था, लेकिन इस बार 1,000 रुपए से अधिक हो गया। ग्रामीणों का कहना है कि जब उनकी खपत पहले जैसी है तो अचानक इतना ज्यादा बिल कैसे आया।
सलोनी ग्राम पंचायत: यहां का मामला विभाग की लापरवाही और मनमानी का सबसे बड़ा उदाहरण है। पंचायत की नल-जल योजना कई सालों से बंद है, लेकिन विभाग ने बिना मीटर और बिना बिजली कनेक्शन के 4 लाख रुपए से भी अधिक का बिल थमा दिया। सरपंच ने खुद इस पर सवाल उठाए, लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई।
अन्य गांवों की स्थिति: पलारी अंचल के कई उपभोक्ता कहते हैं कि हर महीने सामान्य बिल आता था, लेकिन इस बार अचानक कई गुना अधिक राशि थमा दी गई है। कई ग्रामीणों ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि विभाग शिकायत सुनने के बजाय उपभोक्ताओं पर ही दबाव डालता है।
यह हालत केवल पलारी तक सीमित नहीं है, बल्कि राज्य के दूसरे जिलों से भी इसी तरह की शिकायतें मिल रही हैं। पलारी क्षेत्र की आवाज़ पूरे छत्तीसगढ़ के उपभोक्ताओं की वास्तविक स्थिति को सामने रखती है।
छत्तीसगढ़ जैसे कृषि और श्रमिक प्रधान राज्य में बिजली जैसे बुनियादी संसाधन पर इस तरह का अतिरिक्त बोझ जनता के लिए असहनीय है। अब जनता की निगाहें शासन-प्रशासन पर टिकी हैं कि वह विभाग की इस मनमानी को कितनी गंभीरता से लेता है और आम उपभोक्ताओं को राहत देने के लिए क्या ठोस कदम उठाता है।
खबर सबसे पहले 1 नंबर महराज जी
Very nice
लोगों को मिलकर आगे आना होगा 🙌