बलौदा बाजार -: छत्तीसगढ़ के अधिकतर तहसील कार्यालय अब ‘सेवा केंद्र’ नहीं, बल्कि ‘रिश्वत केंद्र’ बनते जा रहे हैं। नामांतरण, नक्शा, खसरा, बी-1, भूमि विभाजन, जाति प्रमाण पत्र या आय प्रमाण पत्र – हर काम के लिए ‘दर तय’ है और ‘बिना पैसे’ कुछ नहीं होता।
हाल ही में पलारी तहसील से सामने आया वीडियो इस गंभीर समस्या का ताजा उदाहरण है, जिसमें ऑपरेटर लेखराम रिश्वत मांगते हुए दिखाई दे रहा है और साफ तौर पर कह रहा है – “मैं तो एक माध्यम हूं, पैसा साहब को जाता है।”
यह कोई पहला मामला नहीं है। राज्य के कई जिलों से लगातार ऐसी शिकायतें मिलती रही हैं कि तहसील कार्यालयों में आम नागरिकों से कार्य के बदले खुलेआम पैसों की मांग की जाती है। यह स्थिति न केवल भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रही है, बल्कि आम जनता के न्याय और अधिकार को भी छीन रही है।
प्रमुख समस्याएं जो उभरकर आई हैं:
ऑनलाइन सेवा होते हुए भी कार्य जानबूझकर रोके जाते हैं
हर दस्तावेज़ के लिए “रेट लिस्ट” तय रहती है
बिना दलालों के काम होना लगभग असंभव
रिश्वत नहीं देने पर फाइलें महीनों अटकी रहती हैं
जनता को बार-बार तहसील के चक्कर काटने पड़ते हैं
प्रशासन की चुप्पी: एक बड़ा सवाल जनता का गुस्सा इस बात को लेकर भी है कि बार-बार शिकायतों के बावजूद प्रशासन सख्त कदम नहीं उठाता। अधिकांश मामलों में एक-दो कर्मचारियों को निलंबित कर, मामला दबा दिया जाता है। लेकिन ऊपरी स्तर के अधिकारियों पर कोई कार्रवाई नहीं होती।
किया चाहिए जनता को ?
सभी तहसीलों की स्वतंत्र जांच हो
ऑनलाइन सेवाओं को पूरी पारदर्शिता के साथ लागू किया जाए
सीसीटीवी निगरानी और सही समय पर ऑडिट प्रणाली हो
रिश्वत मांगने वालों पर सख्त कानूनी कार्रवाई हो
जनता के लिए शिकायत पोर्टल सक्रिय और प्रभावी बनाया जाए