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आपातकाल : दमन और प्रतिरोध का युग

रिपोर्टर टेकराम कोसले

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बलौदाबाजार, 20 जून 2025/

भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में 25 जून 1975 की तारीख एक काले अध्याय के रूप में दर्ज है। इस दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा देश में आंतरिक आपातकाल की घोषणा की गई थी, जो 21 महीने तक चला। इस ऐतिहासिक घटना को 50 वर्ष पूरे हो चुके हैं। इस अवसर पर मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के महासचिव एम ए बेबी ने अपने विशेष आलेख “आपातकाल : दमन और प्रतिरोध का युग” के माध्यम से उस दौर की विभीषिकाओं, जन प्रतिरोध और राजनीतिक संगठनों की भूमिका पर विस्तार से प्रकाश डाला है।

लेखक एम ए बेबी उस समय स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) के केरल राज्य अध्यक्ष थे और कोल्लम के श्री नारायण कॉलेज में छात्र थे। उन्होंने बताया कि आपातकाल की घोषणा के एक सप्ताह के भीतर ही उन्होंने तिरुवनंतपुरम में “आपातकाल को अरब सागर में फेंक दो” के नारे के साथ प्रदर्शन किया, जिसके चलते उन्हें गिरफ्तार कर डिफेंस ऑफ इंडिया रूल्स (डीआईआर) के तहत जेल में डाल दिया गया। उस समय सामान्य शारीरिक यातना आम बात थी।

✊ दमन के खिलाफ संगठित प्रतिरोध

एम ए बेबी लिखते हैं कि आपातकाल के दौरान प्रमुख कम्युनिस्ट नेताओं जैसे ए.के. गोपालन, ईएमएस नंबूदरीपाद समेत कई सीपीआई(एम) नेताओं को गिरफ्तार किया गया। पार्टी पर मीसा (आंतरिक सुरक्षा अधिनियम) और डीआईआर जैसे कठोर कानूनों के तहत मुकदमे चलाए गए।

सीपीआई(एम) ने पहले ही 1972 के मदुरै महाधिवेशन में यह आगाह कर दिया था कि कांग्रेस सरकार एक दमनकारी तानाशाही की ओर बढ़ रही है। पार्टी के दस्तावेज़ों में यह उल्लेख था कि आर्थिक असमानता और 1971 के “गरीबी हटाओ” नारे की विफलता ने जनता में व्यापक असंतोष पैदा कर दिया था।

🛑 फासीवाद और निरंकुशता के बीच अंतर

एम ए बेबी बताते हैं कि इंदिरा गांधी का शासन भले ही पूरी तरह फासीवादी न रहा हो, लेकिन उसने फासीवादी प्रवृत्तियाँ ज़रूर दिखाईं। इस संदर्भ में कॉमरेड ईएमएस ने जॉर्जी दिमित्रोव की प्रसिद्ध पुस्तक “फासीवाद के खिलाफ संयुक्त मोर्चा” को मलयालम में प्रकाशित किया और बताया कि कैसे फासीवाद वित्तीय पूंजी के सबसे प्रतिक्रियावादी तत्वों की खुली आतंकवादी तानाशाही का नाम है।

⚖️ आरएसएस और जनसंघ की भूमिका पर सवाल

आलेख में लेखक ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की भूमिका पर तीखे सवाल उठाए हैं। उन्होंने बताया कि आरएसएस प्रमुख मधुकर देवरस ने इंदिरा गांधी को पत्र लिखकर न सिर्फ क्षमा मांगी, बल्कि संघ के सहयोग की पेशकश भी की। इन पत्रों में देवरस ने आपातकाल के लिए सरकार के कदमों की सराहना की और प्रतिबंध हटाने की अपील की।

इतना ही नहीं, देवरस के इन पत्रों में जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से भी संघ को अलग बताया गया। आरएसएस के इस समर्पण भाव का परिणाम यह हुआ कि भारतीय जनसंघ (भाजपा का पूर्ववर्ती रूप) की उत्तर प्रदेश इकाई ने सरकार को पूर्ण समर्थन देने की घोषणा कर दी। कई जनसंघ नेता कांग्रेस में भी शामिल हो गए।

🗣️ जेपी आंदोलन और जनता की निर्णायक भूमिका

आपातकाल से पहले जेपी आंदोलन, छात्र संघर्ष और 1974 की रेलवे हड़ताल ने जन असंतोष की चिंगारी को आग में बदल दिया था। गुजरात और बिहार में कांग्रेस सरकारें लड़खड़ा रही थीं। मोरारजी देसाई भूख हड़ताल पर बैठ गए। इसी पृष्ठभूमि में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 12 जून 1975 को इंदिरा गांधी को चुनावी भ्रष्टाचार का दोषी ठहराया, जिसके बाद सत्ता बचाने के लिए आपातकाल की घोषणा की गई।

एम ए बेबी ने यह भी उजागर किया कि यह निर्णय इंदिरा गांधी ने मंत्रिमंडल से बिना परामर्श लिए, अकेले में लिया था, जिसकी पुष्टि शाह आयोग ने की थी।

⚠️ आज के संदर्भ में चेतावनी

लेखक का स्पष्ट संकेत है कि आज नरेंद्र मोदी सरकार के नेतृत्व में देश एक “अघोषित आपातकाल” से गुजर रहा है, जहां असहमति को देशद्रोह, राष्ट्रविरोध और एजेंसियों के दुरुपयोग के जरिये दबाया जा रहा है। वे चेताते हैं कि जैसे 1977 में जनता ने अपनी शक्ति से तानाशाही को उखाड़ फेंका था, वैसे ही आज भी जरूरत है कि लोकतंत्र की रक्षा के लिए संगठित प्रतिरोध किया जाए।

🗳️ सबक और संदेश

लेखक का स्पष्ट संदेश है — जनता सर्वोच्च है। कोई भी सत्ता जनता की इच्छा के विरुद्ध ज्यादा समय तक नहीं टिक सकती। लोकतंत्र को बचाने के लिए हमें लगातार और संगठित लड़ाई लड़नी होगी।

📌 लेखक परिचय
एम ए बेबी : मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के वरिष्ठ नेता एवं महासचिव
📌 अनुवादक परिचय
संजय पराते : अखिल भारतीय किसान सभा से संबद्ध, छत्तीसगढ़ किसान सभा के उपाध्यक्ष
📞 संपर्क : 94242-31650

 

 

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