एक व्यंग्य आलेख : संजय पराते
मैनपुरी-: उत्तर प्रदेश। योगी सरकार द्वारा राज्य के सभी जनपदों में हर शनिवार को आयोजित किए जाने वाले ‘संपूर्ण समाधान दिवस’ पर लेखक संजय पराते ने एक तीखा व्यंग्य आलेख प्रस्तुत किया है। लेखक ने इस ढकोसलेबाजी पर सवाल उठाते हुए, पिछले वर्ष दिसंबर की मैनपुरी घटना का ज़िक्र किया, जब एक विधवा महिला को अपनी समस्या ऊंची आवाज़ में बताने पर कलेक्टर ने जेल भेज दिया था।
‘समाधान दिवस’ बनाम ‘रुतबा दिवस’
व्यंग्य आलेख में, ‘संपूर्ण समाधान दिवस’ को आम जनता की समस्याओं के समाधान के बजाय, कलेक्टर और एसपी जैसे अधिकारियों के रुतबे का दिन बताया गया है। लेखक के अनुसार, ये अधिकारी बाकी दिन जनता के सेवक होते हैं, इसलिए इस दिन जनता उनके दरबार में आकर मत्था टेके और उनका ‘चुटकी बजाते समाधान’ करने का अंदाज़ देखे।
बड़ा वाला और ‘चपर-चपर’ करने वाली विधवा
घटना मैनपुरी के थाना किशनी की है, जहाँ कलेक्टर का दरबार सजा था। एक विधवा महिला अपनी बेटी के साथ वहाँ पहुँची। उसकी समस्या थी कि उसकी खेती की ज़मीन पर किसी ‘बड़े आदमी’ ने कब्ज़ा कर लिया है। महिला ने बताया कि वह थाने, चौकी और तहसील के कई बार चक्कर लगा चुकी है, लेकिन हर बार उसे भगा दिया गया है। उसने अपनी शिकायत कलेक्टर के सामने रखी।
लेखक बताते हैं कि जब महिला ने शिकायत रखी, तो उसकी आवाज़ थोड़ी ऊंची थी, जिसे राजस्व विभाग के अधिकारियों ने दबाना चाहा। महिला ने पलटकर कहा कि “हम लोग भाग-भाग कर थक चुके हैं। सब लोग भ्रष्टाचारी और घूसखोर हैं। कोई सुनवाई नहीं कर रहा है।”
कलेक्टर को यह जन सेवक का अपमान लगा कि कोई अदना-सी विधवा उनके प्रभुत्व को चुनौती दे। चूंकि ज़मीन पर कब्ज़ा करने वाला व्यक्ति संभवतः कलेक्टर से भी ‘बड़ा वाला’ था, इसलिए छोटे कलेक्टर साहब को लगा कि महिला की ऊंची आवाज़ पूरी व्यवस्था को चुनौती है।
लोकतंत्र जेब से बाहर झाँका, तो हुई रिहाई
इस ‘चुनौती’ का तुरंत समाधान करते हुए, कलेक्टर ने भरे दरबार में महिला और उसकी बेटी को गिरफ्तार कर जेल भेजने का हुक्म सुना दिया। छोटे जन सेवकों ने तुरंत आदेश का पालन किया और माँ-बेटी को जेल दाखिल कर दिया गया।
लेखक ने तीखा कटाक्ष करते हुए कहा कि कलेक्टर ने शायद यह सोचा होगा कि जो महिला इतनी ‘चपर-चपर’ कर रही है, वह भला ‘जनता’ कैसे हो सकती है? जनता कहलाने के लिए तो ‘भाजपाई होना ज़रूरी’ है।
मामला गोदी मीडिया से आगे बढ़कर सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, जिससे सरकार की ‘नंगाई’ जनता की आँखों में चुभने लगी। लखनऊ को लगा कि ‘अभी संपूर्ण हिंदू राज नहीं आया है और लोकतंत्र भी जेब में ही सही, लेकिन ज़िंदा है और साँसें ले रहा है।’ बड़े अधिकारियों की पेशी के बाद, छोटे कलेक्टर साहब को अपनी जेब में ठूंसे लोकतंत्र से बाहर झाँकती लोक-लाज का ख्याल आया और विधवा महिला तथा उसकी बेटी को छोड़ने का आदेश जारी किया गया।
बुलडोजर राज, समस्या ज्यों-की-त्यों
लेखक संजय पराते ने निष्कर्ष में कहा कि यह घटना योगी प्रशासन का असली चेहरा दिखाती है, जहाँ समस्याओं का समाधान करने का तरीका यह है कि ‘जनता का मुँह बंद कर दो, चाहे उसे जेल में ही क्यों न डालना पड़े।’
लेखक ने सवाल उठाया है कि जो सरकार कानून का नहीं, बुलडोजर का राज स्थापित करना चाहती हो, उसे सत्ता में बने रहने का संवैधानिक हक नहीं है। उन्होंने बताया कि घटना को 10 माह बीत चुके हैं, तीन दर्जन से ज़्यादा समाधान दिवस बीत चुके हैं, लेकिन विधवा माँ-बेटी की समस्या ज्यों-की-त्यों है। ज़मीन हड़पने वाले ‘बड़े वाले’ पर हाथ डालने की हिम्मत बुलडोजर बाबा की भी अभी तक नहीं हुई है।
बहुत बढ़िया आवाज उठाने के लिए👍 संजय प्राते ji 🙏ऐसे ही सच के साथ और खबर दिखाते रहिए team masb news💯🙏
Very good👍 team masb news💯